भगवान् कृष्ण की नगरी द्वारका, गुजरात – एक विस्मरणीय स्थान – Dwarka City History

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Dwarka Gujrat - lord krishna karmbhoomi -12,000 Year old underwater city
Dwarka Gujrat - lord krishna karmbhoomi -12,000 Year old underwater city

द्वारका, गुजरात(Dwarka Gujrat) के गोमती नदी के तट पर देवभूमि द्वारका जिले मे स्थित है। भारत के सबसे सबसे प्राचीन नगरो मे से एक है द्वारका। द्वारका हिन्दुओ के सबसे बड़े तीर्थो में से एक है और सात पुरियो में से एक पुरि है। २ द्वारिका  हैं- गोमती द्वारिका, बेट द्वारिका। गोमती द्वारिका धाम है, बेट द्वारिका पुरी है। बेट द्वारिका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है।  जिले का नाम द्वारका पुरी से रखा गया है जीसकी रचना २०१३ में की गई थी। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है।

इसका नाम द्वारिका इसके  शहर में कई द्वार होने के कारन पड़ा। इस शहर के चारों ओर बहुत ही लंबी दीवार थी जिसमें कई द्वार थे। और ये दीवारे आज भी समुद्रतल देखी जा सकती है।’कुशस्थली’ द्वारका का प्राचीन नाम था। पुरानी कहानियो के अनुसार महाराजा रैवतक ने समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ किया था इसी कारण इस नगरी का नाम कुशस्थली पड़ा था। यहां द्वारकाधीश का प्रसिद्ध मंदिर है जिसे श्री कृष्णा के पोते ने बनवाया था।

Dwarka is situated on the banks of the Gomti river in Gujarat
द्वारका, गुजरात के गोमती नदी के तट पर देवभूमि द्वारका जिले मे स्थित है

 

कृष्णा क्यों गए थे द्वारका:

जब कृष्ण ने राजा कंस का अंत किया तब कंस के श्वसुर मगधपति जरासंध  को क्रोध आया और उसने कृष्णा और सभी यदुवंशियो को मारने की ठानी। जरासंध बार बार मथुरा और यादवो पर आक्रमण कर रहा था। श्री कृष्णा नही चाहते थे कि उनके कारण मथुरावासियो को कठिंनाइ हो या उनका वंश और यादव सुरक्षित न रह पाए और फिर वे सबकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मथुरा छोड़  विनता के पुत्र गरुड़ के आमंत्रण पर कुशस्थली आ गए।कृष्ण अपने 18 नए कुल-बंधुओं के साथ द्वारिका आ गए। वर्तमान द्वारिका नगर कुशस्थली के रूप में पहले से ही विद्यमान थी, कृष्ण ने इसी उजाड़ हो चुकी नगरी को पुनः बसाया।

जब वे  द्वारका वापस आये तो उन्होंने भगवान विश्वकर्मा को अपने राज्य के लिए एक शहर बनाने के लिए कहा। तो भगवान विश्वकर्मा ने बताया कि शहर को तभी बनाया जा सकता है अगर भगवान समुद्रदेव उन्हें कुछ भूमि दें। श्री कृष्णा ने समुद्रदेव से की तो उन्होंने उन्हें भूमि प्रदान की। और जल्द ही आकाशीय निर्माता विश्वकर्मा ने केवल 2 दिनों की छोटी अवधि में द्वारका शहर का निर्माण किया। शहर को ‘सुवर्णा द्वारका’ कहा जाता था क्योंकि यह सब सोने, पन्ना और गहने में पहने हुए थे, जिनका उपयोग भगवान कृष्ण के ‘सुवर्णा द्वारका’ में घरों के निर्माण के लिए किया जाता था। यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण का मूल निवास बेट द्वारका में था, उन्होंने पूरे द्वारका राज्य को प्रशासित किया था। माना जाता है कि द्वारकाधीश का मंदिर वजाराभ ने निर्धारित किया है; महान भगवान के लिए श्रद्धांजलि देने के लिए भगवान कृष्ण के पोते, द्वारका का धार्मिक महत्व अन्य मिथो से भी जुड़ा हुआ है। ऐसा ही एक मिथ द्वारका बताता है कि वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने शैक्ष्वासु को ध्वस्त कर दिया था।

Golden City Dwarka, Gujarat
Golden City Dwarka

कब, क्यों और कैसे डूबी द्वारका?

महाभारत युद्ध के ३६ सालों बाद श्री कृष्ण द्वारा बसाई गयी द्वारका समुद्र में डूब गयी थी।  द्वारिका के समुद्र में डूब जाने और यादव कुलों के नष्ट हो जाने के बाद कृष्ण के प्रपौत्र वज्र और वज्रनाभ द्वारिका के यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यादवों की आपसी लड़ाई में जीवित बचे थे। द्वारिका के समुद्र में डूब जाने के पश्चात् अर्जुन वहाँ गए और  वज्र तथा शेष बची यादव महिलाओं को हस्तिनापुर ले गए। कृष्ण के प्रपौत्र वज्र को हस्तिनापुर में मथुरा का राजा बनाया।
द्वारका के समुद्र में सामने के पीछे दो कारण बताये जाते है।
1: माता माता गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया श्राप
2: ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण पुत्र सांब को दिया गया श्राप।

Gandhari cursed lord krishna
गांधारी ने भगवान् कृष्ण को श्राप दिया था

यदुवंश के नाश का श्राप दिया था गांधारी ने-

महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया था कि जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा।

   ऋषियों ने दिया था सांब को श्राप

एक दिन महर्षि  कण्व,विश्वामित्र, देवर्षि नारद आदि द्वारका गए थे। वहां यादव कुल के कुछ नवयुवकों ने उनके साथ मजाक करने का सोचा। वे युवक श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री वेष में ऋषियों के पास ले गए और कहा कि ये स्त्री गर्भवती है। इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा?
ऋषियों ने जब देखा कि ये युवक हमारा अपमान कर रहे हैं तो उन्हें अत्यधिक क्रोध आया और उन्होंने क्रोधित  होकर उन्हें  श्राप दिया कि- श्रीकृष्ण का यह पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए एक लोहे का मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा तुम जैसे क्रोधी और क्रूर लोग ही अपने समस्त कुल का संहार करोगे। उस मूसल के प्रभाव से केवल श्रीकृष्ण व बलराम ही बच पाएंगे।
जैसा कि मुनियो ने श्राप दिया था उसके प्रभाव से दूसरे ही दिन सांब ने मूसल उत्पन्न किया। इस बात का जैसे ही राजा उग्रसेन को पता चला तो उन्होंने उस मूसल को चुराकर समुद्र में डलवा दिया।  इसके बाद राजा उग्रसेन व श्रीकृष्ण ने नगर में घोषणा करायी कि आज से कोई भी वृष्णि व अंधकवंशी अपने घर में मदिरा का उत्पादन नहीं करेगा। जो भी व्यक्ति छिपकर मदिरा तैयार करेगा, उसको मृत्युदंड दिया जाएगा। घोषणा सुनकर द्वारकावासियों ने मदिरा नहीं बनाने का निश्चय किया।

द्वारका में भयंकर अपशगुन होने लगे थे –

इसके बाद द्वारका में अपशगुन होने लगे। प्रतिदिन आंधी चलने लगी। चूहे इतने ज्यादा बढ़ गए थे कि मार्गों पर मनुष्यों से ज्यादा व्हहे दिखाई देने लगे थे।
वे रात में सोए हुए मनुष्यों के बाल और नाखून कुतरकर खा जाया करते थे। सारस उल्लुओं की और बकरे गीदड़ों की आवाज निकालने लगे। गायों के पेट से गधे, कुत्तियों से बिलाव और नेवलियों के गर्भ से चूहे पैदा होने लगे।

अंधकवंशियों के हाथों मारे गए थे कृष्ण पुत्र प्रद्युम्न

जिस समय ये सब अपशगुन हो रहे थे तब श्री कृष्णा ने तथा पक्ष के तेरहवें दिन अमावस्या का संयोग जानकर श्रीकृष्ण काल की अवस्था पर विचार किया। उन्होंने देखा कि इस समय वैसा ही योग बन रहा है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था। उनको ज्ञात हो गया कि कोरवो कि माता गांधारी का श्राप सत्य होने का समय आ गया है।माता गांधारी के श्राप को सत्य करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण ने यदुवंशियों को आज्ञा दी कि वे तीर्थ यात्रा करें। श्रीकृष्ण की आज्ञा से सभी राजवंशी समुद्र के तट पर प्रभास तीर्थ आकर निवास करने लगे।

krishna meets rukmani in dwarka
भगवान् कृष्ण रुक्मणी से द्वारका मिलते थे

प्रभास तीर्थ में रहते हुए एक दिन जब अंधक व वृष्णि वंशी आपस में बात कर रहे थे। तभी सात्यकि ने आवेश में आकर कृतवर्मा का उपहास और अनादर किया। कृतवर्मा ने भी कुछ ऐसे शब्द कहे कि सात्यकि को क्रोध आ गया और क्रोध में आकर उसने कृतवर्मा का वध कर दिया। यह देखकर अंधकवंशियों ने सात्यकि को घेर लिया और उस पर हमला कर दिया। सात्यकि को अकेला देख श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न उसे बचाने दौड़ पड़े। सात्यकि और प्रद्युम्न अकेले ही अंधकवंशियों से लड़ने लगे। परंतु अंधकवंशि संख्या में अधिक थे और संख्या में अधिक होने के कारण वे अंधकवंशियों से पराजित हो गए और उनके हाथों मारे गए।

अपने पुत्र और सात्यकि की मृत्यु से क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने एक मुट्ठी एरका घास उखाड़ ली। हाथ में आते ही वह घास वज्र के समान भयंकर लोहे का मूसल बन गई। उस मूसल से श्रीकृष्ण सभी का वध करने लगे। जो कोई भी वह घास उखाड़ता वह भयंकर मूसल में बदल जाती (ऐसा ऋषियों के श्राप के कारण हुआ था)। उन मूसलों के एक ही प्रहार से सभी के प्राण निकल रहे थे। उस समय काल के प्रभाव से अंधक, भोज, शिनि और वृष्णि वंश के वीर मूसलों से एक-दूसरे का वध करने लगे। यदुवंशी भी आपस में लड़ते हुए मरने लगे।

Lord Krishna's city drowned in water
पानी में डूब गई भगवान कृष्ण की नगरी

द्वारका: पुरातात्विक(आर्कियोलॉजिकल) व्याख्याएं –

पुरातत्वविद द्वारका के महान महाभारत और मिथिकल शहर के बारे पौराणिक के दावो के कारण यह के शौकीन रहे है। शक्तिशाली अरब सागर में किनारे और किनारे पर कई अन्वेषण और उत्खनन किया गया है। 1 9 63 के आसपास पहली खुदाई शुरू की गई थी और इसे सामने लाया गया था। दो जगहों पर द्वारका के समुद्री किनारे पर आयोजित पुरातत्व खुदाई से ऐसे पत्थर जेटी, कुछ जलमग्न बस्तियों, त्रिभुज तीन पत्थर के एन्कर्स आदि जैसे कई रोचक चीजों को उजागर किया गया। बस्तियों को खोजा गया  फोर्ट के गढ़ों, बाहरी और आंतरिक दीवारों आदि का पता लगाया जा सकता है।

वरहदास के पुत्र सिम्हादिते ने अपने तांबे के शिलालेखों में द्वारका का उल्लेख किया है जो कि 574 ईस्वी तक वापस आ गया है। वराहदास एक समय पर द्वारका का शासक था। क्षेत्र में समय-समय पर किए गए विभिन्न खुदाई और अन्वेषण भगवान कृष्ण की कथा और महाभारत की लड़ाई के बारे में कहानियों को भरोसा देते हैं। द्वारका में पुरातात्विक खुदाई के दौरान की गई वास्तविकताएं बताती हैं कि कृष्ण एक काल्पनिक व्यक्ति हैं और उनकी किंवदंतियां एक मिथ से अधिक हैं।

Lord Krishna's city drowned in water
द्वारका में पुरातात्विक खुदाई

द्वारका: मध्य युग से वर्तमान समय

वर्ष 1241 में शाह ने द्वारका(Dwarka Gujrat) की भूमि पर हमला किया और मंदिर को नुकसान पहुंचाया। इस युद्ध के दौरान 5 ब्राह्मणों ने उसे रोकने की कोशिश की, उन्हें रोकते समय उनकी मृत्यु हो गई। मंदिर के पास इन ब्राह्मणों के वीरता की स्मृति में एक मंदिर स्थापित किया गया था और इसे ‘पंच पीर’ नाम दिया गया था। वर्ष 1473 में, गुजरात के सुल्तान, महमूद बेगड़े ने द्वारका का सफाया कर दिया और मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया जो फिर से बनाया गया था वर्ष 1551 में जब द्वारका पर तुर्क अजीज ने आक्रमण किया था, तो भगवान कृष्ण की मूर्ति इसे बचाने के प्रयास में बेट द्वारका द्वीप में चली गई थी। ओखमांडल क्षेत्र से द्वारका 1857 के विद्रोह के समय बड़ौदा के गायकवाड़ द्वारा शासित था। वर्ष 1858 में ब्रिटिश सेना और वाघर्स मूल के बीच एक युद्ध हुआ था। वाघर्स विजयी हुए और 1859 तक इस क्षेत्र पर शासन किया। 1859 में, गायकवाड, ब्रिटिश और आस-पास के रियासतों के कई अन्य सैनिकों की संयुक्त सेनाओं द्वारा वाघर्स को उखाड़ फेंका गया। उस समय द्वारका और बेट द्वारका के मंदिर को भी नुकसान पहुंचा था। बाद में क्षेत्र के स्थानीय लोगों ने अंग्रेजों द्वारा किये जाने वाले  अत्याचारों के बारे में बताया और अंततः मंदिरों की बहाली का नेतृत्व किया। बाद में, बड़ौदा के राजा महाराजा गायकवाड़ ने 1958 के आसपास एक सुंदर सुनहरा शिखर के साथ मंदिर शिखर की पेशकश की थी। 1960 से ही, भारत सरकार ने मंदिर के रखरखाव की जिम्मेदारी उठायी है।

dwarkadheesh temple
Dwarkadheesh Temple

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